ज्योतिषाचार्य एस.एस.नागपाल
लखनऊ. होली से आठ दिन पहले होलाष्टक की शुरुआत हो जाती है. फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू होता है. इस बार होलाष्टक की शुरुआत 7 मार्च शुक्रवार से हो रही है, जो 13 मार्च को होलिका दहन के बाद समाप्त होगी. 13 मार्च को होलिका दहन, 14 मार्च को रंगों की होली मनाई जाएगी.
मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के आठ दिनों में ग्रह उग्र और रुद्र अवस्था में रहते हैं अत: किसी भी तरह का शुभ और मांगलिक काम वर्जित माना जाता है. नव गृह निर्माण, नया व्यवसाय करना भी लाभकारी नहीं होता. सोना-चांदी, वाहन आदि की खरीदारी करने की भी मनाही होती है. होलाष्टक में जप और तप करना शुभ माना जाता है.
शिव पुराण के अनुसार, कामदेव ने अपना प्रेम बाण चलाकर शिवजी की तपस्या भंग कर दी थी. इससे भगवान महादेव काफी क्रोधित होकर अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया था. प्रेम के देवता कामदेव के भस्म हो जाने पर पूरी सृष्टि में शोक और हाहाकार मच गया और दुनिया थम सी गई.
कामदेव की पत्नी रति ने अपने पति को पुनर्जीवित करने के लिए सभी देवी-देवताओं के साथ भोलेनाथ से प्रार्थना की थी. भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर कामदेव को फिर से जीवनदान दे दिया. कामदेव फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि को भस्म हुए थे और पूर्णिमा तिथि को पुनर्जीवित हुए थे. इस वजह से होलाष्टक के आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. दूसरी मान्यता यह है कि होली से पहले होलाष्टक के आठ दिन अशुभ माने जाते हैं, इसी अवधि में भक्त प्रह्लाद को उनके पिता हिरण्यकश्यप ने कई यातनाएं दी थीं इस वजह से इन आठ दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता. अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र होते हैं.
होलाष्टक में भगवान विष्णु, शिव, हनुमान जी के मंत्र का जाप शुभ फलदायी माना जाता है. 14 मार्च के बाद मीन खरमास लग जायेगा उसमें विवाह आदि कार्य नहीं होते हैं. मीन खरमास समाप्ति के बाद 14 अप्रैल से विवाह आदि मांगलिक कार्य प्रारम्भ होंगे.