ज्योतिषाचार्य-एस.एस.नागपाल
लखनऊ। माताएं अपने पुत्र के दीर्घायु, सुखी और निरोगी जीवन के लिए कल 25 सितंबर को जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत या जीमूतवाहन व्रत रखेंगी। जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि इस वर्ष 24 सितंबर को दोपहर में 12 बजकर 38 मिनट पर लग जाएगी। इसका समापन 25 सितंबर को दोपहर में 12 बजकर 10 मिनट पर होगा। जितिया का व्रत रखने वाली माताएं 25 सितंबर को व्रत रखके अगले दिन यानी 26 सितंबर को व्रत का पारण सुबह करेंगी। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं, जिसमें जल, फल या अन्न आदि ग्रहण नहीं किया जाता है।
जितिया व्रत पूजा- विधि
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें। इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें। इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है। इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है. पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा दें।
जितिया व्रत का कथा
जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है।धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी की पांच संतानें थीं। अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा।