अमितप्रकाश सिंह
कवि त्रिलोचन प्रकृति, प्रेम, और मानव संबंधों के एक अद्भुत कवि थे। उनकी कविताएं सामाजिक – आर्थिक संघर्षों को शहरी, ग्रामीण समाज के फलक पर देखते हुए एक तस्वीर बनाती हैं। उनकी कविता सिर्फ तस्वीर नहीं दिखातीं बल्कि साथ चलते हुए राह बनाने की बात भी करती हैं।
उनकी कविताएं चाहे वे मुक्त छंद की हों या छंद में हों या फिर यूरोपीय सानेट हो या फिर लोकभाषा अवधी में हों, नई ताजगी देती हैं। उनकी कविता उत्साह, उल्लास और उमंग की कविता है। एक संवाददाता की तरह उनकी कविताओं में खोजी प्रस्तुति दिखती है। यह उनकी खासियत है। उनकी कविताओं में बादलों के रूपरंग, आंधियों के नाम और उनकी विनाशलीला उनके दौर के दूसरे कवियों में कम ही दिखती है।
उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर जिले में जन्मे कवि त्रिलोचन ( 20 अगस्त 1917-09दिसंबर 2007 ) को उनकी कविताओं और गद्य में आई रचनाओं के जरिए ही जानना चाहिए। आवरण देखकर आकलन करने वाले बुद्धिजीवी उनके दौर में थे आज तो खैर, बडी तादाद है। हालांकि ज्यादातर उन्हें जानने – समझने का दम भरते हैं। इसका अहसास उनकी ही कई कविताओं से मिलता है। कविता ‘कह नहीं सकता’-संकलन ‘चैती’ में वे लिखते हैं-‘ कहते हैं चुप रहना अच्छा है/ अपनी चुप छोड़ कर हर कोई कहता है। ‘इसी संकलन की एक दूसरी कविता है ‘मैं कृतज्ञ हूं’
‘मेरी कविताओं के सपने सब मेरे हैं/ मुझे तो प्रसन्नता है यदि मेरे सपनों को कोई भी / नहीं कहता मेरे हैं।’
कवि त्रिलोचन की ‘राजनीति’ क्या थी इस पर हिंदी के अध्यापक और शोध से जुडे लोग भी तय नही कर पाते। चूंकि उन्हें पढ़ने का समय नहीं होता इसलिए जिन शहरों में वे रहे वहीं के विशेषज्ञ कहलाने वालों की कल्पित राय पर अपना काम निपटा लेते हैं। इससे निर्रथक भ्रम उस कवि के परिवार तक के बारे में फैलता रहा जो सारी जिंदगी बेहद साधारण जीवन जिया। आज भी इसके कारण पूरे परिवार को बेबस हो जाना पड़ता है। जबकि उनके परिवार में एक पुत्र और उसका परिवार है लेकिन उनसे कोई संपर्क नहीं करता। त्रिलोचन की तकरीबन अठारह पुस्तकें हैं और काफी कुछ लिखा प्रकाश में नहीं है।
जो हो मुझे अब भी उम्मीद है कभी हिंदी में कुछ बुद्धिजीवी होंगे जो कवि त्रिलोचन को सिर्फ गपियाने और मौज लेने से ऊपर आकर उनका सही और बेहतर आकलन करेंगे।
ऐसे कवि लेखक त्रिलोचन को मेरा नमन ।